LOAD KRISHNA
Krishna is the Supreme Personality of Godhead. The question is then why is he called Krishna? The answer is because word Krishna means “he who attracts everyone” and also because Shree Brahma the creator of the physical universe called him Krishna when he prayed to his creator for guidance in creating this physical creation. Krishna is also known as Parbrahma Krishna, Aksharaitita Krishna, Purna Purusottam, Supreme Father, Paramatama, Paramtattav, and Raj Shyma. There is no other being above and beyond Krishna. Krishna the Supreme Personality of Godhead appeared on Earth as the 8th avatar in Sanatan Dharma (Hinduism). His appearance occurred in Indian 5,000 years ago and he remained on earth for 125 years playing like a human being while establishing righteousness and dharma.
What makes the appearance of Krishna the Supreme Personality of Godhead so unique is that while all the other avatars were of Shree Vishnu, Shree Brahmaji, or Shree Sankar in Sanatan Dharma (Hinduism), the 8th avatar was of Supreme Personality of Godhead Krishna himself. Please note that Parbrahma and Brahma do not take birth through mother womb, they just appear. There are different types of avatars that can happen—Avesh, Ansha, Anshansh, Maryada, and Purna.
Avesh avatar is entering of any of the avatar into a form of certain human for certain time and certain purpose. The word Ansha means expansion of vibhuty as continual fractional power as a divine personality or form. Vibhuty is a different energy of Brahma combining to create a swaroop (form). Anshansh is an expansion of Ansha avatar. Maryada avatar is usually an expansion of Brahma. Purna avatar is the Supreme Personality of Godhead himself in his total opulence and power. All other avatars have some limitation in the opulence and power, but not the Purna avatar
कृष्ण को ईश्वर मानना अनुचित है, किंतु इस धरती पर उनसे बड़ा कोई ईश्वर तुल्य नहीं है, इसीलिए उन्हें पूर्ण अवतार कहा गया है। कृष्ण ही गुरु और सखा हैं। कृष्ण ही भगवान है अन्य कोई भगवान नहीं। कृष्ण हैं राजनीति, धर्म, दर्शन और योग का पूर्ण वक्तव्य। कृष्ण को जानना और उन्हीं की भक्ति करना ही हिंदुत्व का भक्ति मार्ग है। अन्य की भक्ति सिर्फ भ्रम, भटकाव और निर्णयहीनता के मार्ग पर ले जाती है। भजगोविंदम मूढ़मते।
कृष्ण जन्म : पुराणों अनुसार आठवें अवतार के रूप में विष्णु ने यह अवतार आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागर में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के सात मुहूर्त निकल गए और आठवाँ उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न उपस्थित हुआ। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5121 वर्ष पूर्व) को हुआ हुआ। ज्योतिषियों अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था।
कृष्ण पर शोध : हाल ही में ब्रिटेन में रहने वाले शोधकर्ता ने खगोलीय घटनाओं, पुरातात्विक तथ्यों आदि के आधार पर कृष्ण जन्म और महाभारत युद्ध के समय का सटिक वर्णन किया है। ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलिय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्तभगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे।
उन्होंने अपनी खोज के लिए टेनेसी के मेम्फिन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर डॉ. नरहरि अचर द्वारा 2004-05 में किए गए शोध का हवाला भी दिया। इसके संदर्भ में उन्होंने पुरातात्विक तथ्यों को भी शामिल किया। जैसे कि लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के सबूत, पानी में डूबी द्वारका और वहाँ मिले कृष्ण-बलराम के की छवियों वाले पुरातात्विक सिक्के और मोहरे, ग्रीक राजा हेलिडोरस द्वारा कृष्ण को सम्मान देने के पुरातात्विक सबूत आदि।
महाभारत, गीता और कृष्ण के समय के संबंध में मेक्समूलर, बेबेर, लुडविग, हो-ज्मान, विंटरनिट्स फॉन श्राडर आदि सभी विदेशी विद्वानों द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों का कुछ भारतीय विद्वानों ने भी अनुसरण कर भ्रम के जाल को और बढ़ावा दिया है। भारत में ब्रह्माकुमारी जैसे मिशनों ने भी कृष्ण और महाभारत युद्ध की ऐतिहासिकता के संबंध में भ्रम फैला रखा है। उक्त की बातों को जोरदार तरीके से खंडन कर कृष्ण पर समग्र शोध किए जाने की आवश्यकता है।
दयानंद सरस्वती ने विदेशी विद्वानों की बातों का खंडन कर अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में एक लेख लिखा था जिसमें युद्धिष्ठिर से लेकर अंतिम हिंदू राजा यशपाल तक के नाम दिए है। यशपाल को शाहबुद्दीन ने पराजित कर दिल्ली पर अपना आधिपत्य कायम किया था।
कृष्ण जीवन : श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है वही इतिहास सिद्ध है बाकी सभी विस्तार, अलंकार और श्रृंगार की बातें हैं। वेदों के गोपी, गोपिका और रास का गलत अर्थ निकाले जाने के कारण भागवत और ब्रह्मवैवर्त सहित अन्य पुराणों में उनके जीवन चरित्र को श्रृंगारिक रूप दिया गया है। श्रीकृष्ण ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं, जो अपने कर्मों से मनुष्य से भगवान या महामानव हो गए न कि ईश्वर। न वे सृष्टि रचयिता हैं और न ही सृष्टिपालक। वे तो महामानव हैं।
श्रीकृष्ण शिक्षा-दीक्षा : योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने वेद और योग की शिक्षा और दीक्षा उज्जैन स्थित महर्षि सांदिपनी के आश्रम में रह कर हासिल की थी। वह योग में पारगत थे तथा योग द्वारा जो भी सिद्धियाँ होती है वह स्वत: ही उन्हें प्राप्य थी। सिद्धियों से पार भी जगत है वह उस जगत की चर्चा गीता में करते हैं। गीता मानती है कि चमत्कार धर्म नहीं है। स्थितप्रज्ञ हो जाना ही धर्म है।
कृष्ण लीलाएँ : कृष्ण के जीवन में बहुत रोचकता और उथल-पुथल रही है। बाल्यकाल में वे दुनिया के सर्वाधिक नटखट बालक रहे, तो किशोर अवस्था में गोपियों के साथ पनघट पर नृत्य करना और बाँसुरी बजाना उनके जीवन का सबसे रोचक प्रसंग है। कुछ और बड़े हुए तो मथुरा में कंस का वध कर प्रजा को अत्याचारी राजा कंस से मुक्त करने के उपरांत कृष्ण ने अपने माता-पिता को भी कारागार से मुक्त कराया। इसके अलावा कृष्ण ने पूतना, शकटासुर, यमलार्जुन मोक्ष, कलिय-दमन, धेनुक, प्रलंब, अरिष्ट आदि राक्षसों का संहार किया था। श्रीकृष्ण ही ऐसे थे जो इस पृथ्वी पर सोलह कलाओं से पूर्ण होकर अवतरित हुए थे। और उनमें सभी तरह की शक्तियाँ थी।
कृष्ण पत्नी और प्रेमिका : कृष्ण को चाहने वाली अनेकों गोपियाँ और प्रेमिकाएँ थी। कृष्ण-भक्त कवियों ने अपने काव्य में गोपी-कृष्ण की रासलीला को प्रमुख स्थान दिया है। पुराणों में गोपी-कृष्ण के प्रेम संबंधों को आध्यात्मिक और अति श्रांगारिक रूप दिया गया है। महाभारत में यह आध्यात्मिक रूप नहीं मिलता।
रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती आदि कृष्णकी विवाहिता पत्नियाँ हैं। राधा, ललिता आदि उनकी प्रेमिकाएँ थी। उक्त सभी को सखियाँ भी कहा जाता है। राधा की कुछ सखियाँ भी कृष्ण से प्रेम करती थी जिनके नाम निम्न है:- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी हैं। ब्रह्मवैवर्त्त पुराण अनुसार कृष्ण की कुछ ही प्रेमिकाएँ थी जिनके नाम इस तरह है:- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।
कर्म योगी कृष्ण : गीता में कर्म योग का बहुत महत्व है। गीता में कर्म बंधन से मुक्ति के साधन बताएँ हैं। कर्मों से मुक्ति नहीं, कर्मों के जो बंधन है उससे मुक्ति। कर्म बंधन अर्थात हम जो भी कर्म करते हैं उससे जो शरीर और मन पर प्रभाव पड़ता है उस प्रभाव के बंधन से मुक्ति आवश्यक है।
कृष्ण ने जो भी कार्य किया उसे अपना कर्म समझा, अपने कार्य की सिद्धि के लिए उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद सभी का उपयोग किया, क्योंकि वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण जीते थे और पूरी जिम्मेदारी के साथ उसका पालन करते थे। न अतीत में और न भविष्य में, जहाँ हैं वहीं पूरी सघनता से जीना ही उनका उद्देश्य रहा।
कृष्ण निवास : गोकुल, वृंदावन और द्वारिका में कृष्ण ने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण क्षण गुजारे। पूरे भारतवर्ष में कृष्ण अनेकों स्थान पर गए। वे जहाँ-जहाँ भी गए उक्त स्थान से जुड़ी उनकी गाथाएँ प्रचलित है लेकिन मथुरा उनकी जन्मभूमि होने के कारण हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
महाभारत का युद्ध : कौरवों और पांडवों के बीच हस्तिनापुर की गद्दी के लिए कुरुक्षेत्र में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध हुआ था। कुरुक्षेत्र हरियाणा प्रान्त का एक जिला है। मान्यता है कि यहीं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
कृष्ण इस युद्ध में पांडवों के साथ थे। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। नवीनतम शोधानुसार यह युद्ध 3067 ई. पूर्व हुआ था। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी। तभी से कलियुग का आरम्भ माना जाता है।
कृष्ण जन्म और मृत्यु के समय ग्रह-नक्षत्रों की जो स्थिति थी उस आधार पर ज्योतिषियों अनुसार कृष्ण की आयु 119-33 वर्ष आँकी गई है। उनकी मृत्यु एक बहेलिए के तीर के लगने से हुई थी।
गीता प्रवचन : कृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान महाराजा पांडु एवं रानी कुंती के तीसरे पुत्र अर्जुन को जो उपदेश दिया वह गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों के सार को गीता कहा गया है। ऋषि वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे। गीता महाभारत के भीष्मपर्व का हिस्सा है।
स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि युद्ध क्षेत्र में जो ज्ञान मैंने तुझे दिया था उस वक्त मैं योगयुक्त था। अत: उस अवस्था में परमात्मा की बात कहते हुए, वह परमात्मा के प्रतिनिधि बनते हुए परमात्मा के लिए मैं, मेरा, मुझे इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते हैं इससे यह आशय नहीं कि वे खुद परमात्मा हैं या उनमें किसी प्रकार का अहंकार है।
द्वारिका निर्माण : कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने गुजरात के समुद्र के तट पर द्वारिका का निर्माण कराया और वहाँ एक नए राज्य की स्थापना की। कालांतर में यह नगरी समुद्र में डूब गई, जिसके कुछ अवशेष अभी हाल में ही खोजे गए हैं। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित शारदापीठ भी यहीं पर स्थित है। हिंदुओं को चार धामों में से एक द्वारिका धाम को द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ कहा जाता है। स्कंदपुराण में श्रीद्वारिका महात्म्य का वर्णन मिलता है।
जैन धर्म : जैन धर्म के २२वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ भगवान जो कृष्ण के चचेरे भाई थे, कृष्ण इनके पास बैठकर इनके प्रवचन सुना करते थे। जैन धर्म ने कृष्ण को उनके त्रैषठ शलाका पुरुषों में शामिल किया है, जो बारह नारायणों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि अगली चौबीसी में कृष्ण जैनियों के प्रथम तीर्थंकर होंगे।
''उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात पूजते हैं। परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।''-कृष्ण
कृष्ण पूर्ण योगी और यौद्धा थे। यमुना के तट पर और यमुना के ही जंगलों में गाय और गोपियों के संग-साथ रहकर बाल्यकाल में कृष्ण ने पूतना, शकटासुर, यमलार्जुन, कलिय-दमन, प्रलंब, अरिष्ट आदि का संहार किया तो किशोरावस्था में बड़े भाई बलदेव के साथ कंस का वध किया। जवान होते-होते उनकी दूर-दूर तक ख्याति फैल गई थी। फिर भी कृष्ण का जीवन सफलताओं और असफलताओं की एक लंबी और रोचक दास्तान है।
कृष्ण के बाल जीवन पर अनेक किस्से लिखे गए हैं लेकिन महाभारत में कृष्ण के बाल्यकाल का वृत्तांत नहीं मिलता। महाभारत के हरिवंश पर्व में ही कृष्ण का जीवन वृत्तांत मिलता है। महाभारत के भीष्म पर्व में भीष्म द्वारा कृष्ण की जो महिमा का वर्णन किया गया है वह शिशुपाल द्वारा आपत्ति लिए जाने के कारण ही किया गया था। यह सब वचन प्रशंसा के निमित्त ही कहे गए थे। भीष्म ने कृष्ण के उत्तम चरित्र को देखकर उन्हें नारायण हरि का पद दिया था।
कृष्ण जन्म : हिंदू मान्यता अनुसार विष्णु ने आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में आठवें अवतार श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागर में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के सात मुहूर्त निकल गए और आठवाँ उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न में हुआ। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में ईसा से लगभग 3200 वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ। ज्योतिषियों अनुसार उस समय शून्य काल (रात 12 बजे) था।
ऐतिहासिक अनुसंधानों के आधार पर श्रीकृष्ण का जन्म लगभग 1500 ई.पू. माना जाता है, जो कि अनुचित है। हिंदू काल गणना अनुसार आज से लगभग 5235 वर्ष पूर्व कृष्ण का जन्म हुआ था।
कालिया नाग : कदंब वन के समीप एक नाग जाति का व्यक्ति रहता था, जिसे पुराणों ने नाग ही घोषित कर दिया। उक्त व्यक्ति बालक कृष्ण के द्वार पर आ धमका था। जबकि घर में कोई नहीं था, लेकिन बलशाली कृष्ण ने उक्त व्यक्ति को तंग कर वहाँ से भगा दिया। इसी प्रकार वहीं ताल वन में दैत्य जाति का धनुक नाम का अत्याचारी व्यक्ति रहता था जिसे बलदेव ने मार डाला था। उक्त दोनों घटना के कारण दोनों भाइयों की ख्याति फैल गई थी।
कृष्ण की पत्नी और प्रेमिका : कृष्ण को चाहने वाली अनेक गोपियाँ और प्रेमिकाएँ थीं। कृष्ण-भक्त कवियों ने अपने काव्य में गोपी-कृष्ण की रासलीला को प्रमुख स्थान दिया है। पुराणों में गोपी-कृष्ण के प्रेम संबंधों को आध्यात्मिक और अति श्रृंगारिक रूप दिया गया है। महाभारत में यह आध्यात्मिक रूप नहीं मिलता।
रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती आदि कृष्ण की विवाहिता पत्नियाँ हैं। राधा, ललिता आदि उनकी प्रेमिकाएँ थीं। उक्त सभी को सखियाँ भी कहा जाता है। राधा की कुछ सखियाँ भी कृष्ण से प्रेम करती थीं जिनके नाम निम्न हैं:- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी हैं। ब्रह्मवैवर्त्त पुराण अनुसार कृष्ण की कुछ ही प्रेमिकाएँ थीं जिनके नाम इस तरह हैं:- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।
कंश का वध : किसी ने कंस को बताया कि वासुदेव और देवकी की संतान ही उसकी मृत्यु का कारण होगी। अत: कंस उक्त दोनों की संतान के उत्पन्न होते ही मार डालता था। कृष्ण वासुदेव की आठवीं संतान थे। वासुदेव इस संतान को चोरी-चोरी नंदग्राम में नंद ग्वाले के घर रख आए और फिर कृष्ण का वहीं पालन-पोषण हुआ। इसी काल में कृष्ण की दूसरी माँ के पुत्र बलराम को भी वहाँ लाकर रख दिया था। दोनों भाई वहीं पले-बढ़े।
कालिया और धनुक का सामना करने के कारण दोनो भाइयों की ख्याति के चलते कंस समझ गया कि ज्योतिष भविष्यवाणी अनुसार इतने बलशाली तो वासुदेव और देवकी के पुत्र ही हो सकते हैं। तब कंस ने दोनों भाइयों को पहलवानी के लिए निमंत्रण दिया क्योंकि कंस चाहता था कि इन्हें पहलवानों के हाथों मरवा दिया जाए, लेकिन दोनों भाइयों ने पहलवानों के शिरोमणि चाणूर और मुष्टिक को मारकर कंस को पकड़ लिया और सबके देखते-देखते ही उसको भी मार दिया।
कृष्ण की शिक्षा-दीक्षा: योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने वेद और योग की शिक्षा और दीक्षा उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि के आश्रम में रहकर हासिल की थी। उस काल में उज्जैन को उज्जयिनी व अवंतिका कहा जाता था। वहाँ से शिक्षा पाकर वे मथुरा की रक्षा करने लगे। कंस के मरने पर उन्होंने मथुरा में वृष्णि, अंधक, भोज और शनि वंशों का गणराज्य स्थापित किया था।
जरासंघ का आक्रमण: जरासंघ कंस का श्वसुर था। कंस की पत्नी मगथ नरेश जरासंघ को बार-बार इस बात के लिए उकसाती थी कि कंस का बदला लेना है। इस कारण जरासंघ ने मथुरा के राज्य को हड़पने के लिए कई आक्रमण किए तब अंतत: कृष्ण ने अपने सजातियों को मथुरा छोड़ देने पर राजी कर लिया। वे सब मथुरा छोड़कर रैवत पर्वत के समीप कुशस्थली पुरी (द्वारिका) में जाकर बस गए।- महाभारत मौसल- 14.43-50
भौमासुर से युद्ध : इस पलायन के दौरान हिमालय जिसे देवलोक कहा जाता था वहाँ भौमासुर का राज्य हो चला था जो देवताओं को सताया करता था। उसने इंद्र की माता अदिति के कुंडल छीन लिए थे और वह उसे वापस नहीं कर रहा था। तब देवों के कहने पर कृष्ण ने भौमासुर से युद्ध करना स्वीकार कर लिया। लेकिन उन्होंने दो शर्तें उपस्थित कर दीं। एक तो उन्होंने सुदर्शन चक्र माँगा और दूसरा युद्ध के लिए गरुड़ यान। तब ही वे युद्ध करेंगे। देवराज इंद्र ने यह स्वीकार कर लिया। चक्र और गरुढ़ यान होने के कारण उन्हें विष्णु का अवतार माना जाने लगा। क्योंकि यह दोनों वस्तुएँ सिर्फ विष्णु के पास ही होती थीं। सुदर्शन चक्र को उस काल में बहुत ही घातक अस्त्र माना जाता था।
कृष्ण की गीता : वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों का सार 'गीता' को माना है। कृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान महाराजा पांडु एवं रानी कुंती के तीसरे पुत्र अर्जुन को जो ज्ञान दिया वह गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गीता में सब कुछ है- दर्शन है, योग है, धर्म है और नीति भी। गीता कृष्ण द्वारा महाभारत के भीष्मपर्व में अर्जुन को दिया गया ज्ञान है। इसे महाभारत के साथ पढ़ने और समझने से ही लाभ मिलता है। अन्यत्र से नहीं।
महाभारत युद्ध : विश्व इतिहास में महाभारत के युद्ध को धर्मयुद्ध के नाम से जाना जाता है। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने एक बाण लगने के कारण देह छोड़ दी थी।
महाभारत युद्ध चंद्रवंशियों के दो परिवार कौरव और पांडव के बीच हुआ था। उक्त लड़ाई आज के हरियाणा स्थित कुरुक्षेत्र के आसपास हुई मानी गई है। इस युद्ध में पांडव विजयी हुए थे। इस लड़ाई में कृष्ण पांडवों के साथ थे। बलदेव दुर्योधन की ओर से लड़ना चाहते थे लेकिन कृष्ण के पांडवों की ओर होने से उन्होंने युद्ध का त्याग कर दिया। इस युद्ध के बाद यदुवंशियों में आपसी फूट पड़ गई और वे सभी आपस में लड़कर ही मर गए। पारिवारिक युद्ध के चलते कृष्ण के पुत्र साम्ब, चारुदेष्ण, और प्रद्युम्न तथा पोते अनिरुद्ध भी जब युद्ध में मारे गए तो कृष्ण ने क्रोधवश शेष बचे यादवों का नाश कर दिया।- महाभारत मौसल-3.41-3.46
तपस्या और महाप्रयाण : यादवों का नाश होने के पश्चात्य उन्होंने अपने पिता से कहा कि आपने यदुवंशियों का विनाश देखा इससे पूर्व आपने कुरुवंशियों का नाश देखा। अब मैं यादवों के बिना द्वारिका की रक्षा करने में असमर्थ हूँ। अंत: वन में जाकर बलदेवजी के साथ तपस्या करूँगा।- महाभारत मौसल-4-6
वन में श्रीकृष्ण भूमि पर लेटे थे। उस समय एक व्याघ मृगों को मारने की इच्छा से उधर आ निकला। व्याघ ने दूर से श्रीकृष्ण को मृग समझकर उन पर बाण चला दिया। जब वह पास आया तो पीताम्बरधारी कृष्ण को वहाँ देख भयभीत हो खड़ा रह गया। 119 वर्ष की उम्र में कृष्ण ने देह छोड़ दी।
परमात्मा और कृष्ण : कृष्ण को महर्षि वेद व्यास परमात्मा मानते थे। महाभारत को छोड़कर कृष्ण के जीवन चरित्र के संबंध में पुराणों या अन्य ग्रंथों में अतिरंजित चित्रण किया गया। जबकि गीता और महाभारत में अनेक स्थानों पर कृष्ण ने स्वयं को कभी ईश्वर या परमात्मा नहीं कहा।
गीता के श्लोक 13-19 में परमात्मा, आत्मा और प्रकृति में भेद माना है। गीता और महाभारत में कई स्थानों पर भगवान कृष्ण ने परमात्मा की सत्ता को स्वीकार कर यह सिद्ध किया है कि वे स्वयं परमात्मा नहीं हैं। गीता में अनेक स्थानों पर परमात्मा को अन्य वचन में कहा गया है। जहाँ उत्तम पुरुष (मैं) में लिखा गया है वहाँ उक्त काल व परिस्थितिवश विशेष प्रयोजन में ऐसा हो सकता है।
भगवान का अर्थ जो समस्त ऐश्वर्य-युक्त हो तथा धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान वैराग्य से युक्त हो। जो योगयुक्त मोक्ष में स्थित है उसे ही स्थितप्रज्ञ, भगवान, अरिहंत या बुद्ध कहा जाता है। भगवान शब्द का उपयोग परमात्मा या ईश्वर के लिए भी किए जाने से भ्रम उत्पन्न होता है।
अंतत: कृष्ण के जीवन के कई उलझे हुए पहलू हैं जिन्हें समझना आसान नहीं है किंतु फिर भी महाभारत का गहन अध्ययन किया जाए तो उनके जीवन की सच्चाई को जाना जा सकता है। आज जरूरत इस बात की है कि हम कृष्ण के जीवन को पौराणिक गाथा और चमत्कारों से हटाकर ऐतिहासिक तथ्यों के साथ लिखें। इति। श्रीकृष्णाय शरणम मम्।
What makes the appearance of Krishna the Supreme Personality of Godhead so unique is that while all the other avatars were of Shree Vishnu, Shree Brahmaji, or Shree Sankar in Sanatan Dharma (Hinduism), the 8th avatar was of Supreme Personality of Godhead Krishna himself. Please note that Parbrahma and Brahma do not take birth through mother womb, they just appear. There are different types of avatars that can happen—Avesh, Ansha, Anshansh, Maryada, and Purna.
Avesh avatar is entering of any of the avatar into a form of certain human for certain time and certain purpose. The word Ansha means expansion of vibhuty as continual fractional power as a divine personality or form. Vibhuty is a different energy of Brahma combining to create a swaroop (form). Anshansh is an expansion of Ansha avatar. Maryada avatar is usually an expansion of Brahma. Purna avatar is the Supreme Personality of Godhead himself in his total opulence and power. All other avatars have some limitation in the opulence and power, but not the Purna avatar
भगवान कृष्ण की बाल लीलाएँ
कृष्ण एक किंवदंति..., एक कथा..., एक कहानी...। जिसके अनेक रूप और हर रूप की लीला अद्भुत। प्रेम को परिभाषित करने वाले, उसे जीने वाले इस माधव ने जिस क्षेत्र में हाथ रखा वहीं नए कीर्तिमान स्थापित किए।
माँ के लाड़ले, जिनके संपूर्ण व्यक्तित्व में मासूमियत समाई हुई है। कहते तो लोग ईश्वर का अवतार हैं, पर वे बालक हैं तो पूरे बालक। माँ से बचने के लिए कहते हैं- मैया मैंने माखन नहीं खाया। माँ से पूछते हैं- माँ वह राधा इतनी गोरी क्यों है, मैं क्यों काला हूँ? शिकायत करते हैं कि माँ मुझे दाऊ क्यों कहते हैं कि तू मेरी माँ नहीं है। 'यशोदा माँ' जिसे अपने कान्हा से कोई शिकायत नहीं है? उन्हें अपने लल्ला को कुछ नहीं बनाना, वह जैसा है उनके लिए पूरा है।
'मैया कबहुँ बढ़ैगी चोटी।
किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूँ है छोटी।'
यहाँ तक कि मुख में पूरी पृथ्वी दिखा देने, न जाने कितने मायावियों, राक्षसों का संहार कर देने के बाद भी माँ यशोदा के लिए तो वे घुटने चलते लल्ला ही थे जिनका कभी किसी काम में कोई दोष नहीं होता। सूर के पदों में अनोखी कृष्ण बाल लीलाओं का वर्णन है। सूरदास ने बालक कृष्ण के भावों का मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया जिसने यशोदा के कृष्ण के प्रति वात्सल्य को अमर कर दिया। यशोदा के इस लाल की जिद भी तो उसी की तरह अनोखी थी 'माँ मुझे चाँद चाहिए।'
श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। वे माँ के सामने रूठने की लीलाएँ करने वाले बालकृष्ण हैं तो अर्जुन को गीता का ज्ञान देने वाले योगेश्वर कृष्ण। इस व्यक्तित्व का सर्वाधिक आकर्षक पहलू दूसरे के निर्णयों का सम्मान है। कृष्ण के मन में सबका सम्मान है। वे मानते हैं कि सभी को अपने अनुसार जीने का अधिकार है।
अपनी बहन के संबंध में लिए गए अपने दाऊ (बलराम) के उस निर्णय का उन्होंने प्रतिकार किया जब दाऊ ने यह तय कर लिया कि वह बहन सुभद्रा का विवाह अपने प्रिय शिष्य दुर्योधन के साथ करेंगे। तब कृष्ण ही ऐसा कह सकते थे कि 'स्वयंवर मेरा है न आपका, तो हम कौन होते हैं सुभद्रा के संबंध में फैसला लेने वाले।' समझाने के बाद भी जब दाऊ नहीं माने तो इतने पूर्ण कृष्ण ही हो सकते हैं कि बहन को अपने प्रेमी के साथ भागने के लिए कह सके।
राजसूय यज्ञ में पत्तल उठाने वाले, अपने रथ के घोड़ों की स्वयं सुश्रूषा करने वाले कान्हा के लिए कोई भी कर्म निषिद्ध नहीं है।
महाभारत युद्ध, जिसके नायक भी वे हैं पर कितनी अनोखी बात है कि इस युद्ध में उन्होंने शस्त्र नहीं उठाए! इस अनूठे व्यक्तित्व को किस ओर पकड़ो कि यह अंक में समा जाए पर कोशिश हर बार अधूरी ही रह जाती है। महाभारत एक विशाल सभ्यता के नष्ट होने की कहानी है। इस घटना के अपयश को श्रीकृष्ण जैसा व्यक्तित्व ही शिरोधार्य कर सकता है।
कितनी बड़ी प्रतीक कथा है जिसमें श्रीकृष्ण ने तय किया कि अब सुधार असंभव है। जब राजभवन में ही स्त्रियों की यह स्थिति है तो बाकी समाज का क्या हाल होगा। राज-दरबार में ही राजवधू का चीरहरण सारे कथित प्रबुद्ध लोगों के सामने हो सकता है तब ऐसे समाज में कोई सुरक्षित भी नहीं है, साथ ही ऐसे समाज को खड़े रहने का कोई अधिकार भी नहीं। इसलिए उन्होंने संदेश दिया- हे अर्जुन उठा शस्त्र! तू तो मात्र निमित्त होगा!
माँ के लाड़ले, जिनके संपूर्ण व्यक्तित्व में मासूमियत समाई हुई है। कहते तो लोग ईश्वर का अवतार हैं, पर वे बालक हैं तो पूरे बालक। माँ से बचने के लिए कहते हैं- मैया मैंने माखन नहीं खाया। माँ से पूछते हैं- माँ वह राधा इतनी गोरी क्यों है, मैं क्यों काला हूँ? शिकायत करते हैं कि माँ मुझे दाऊ क्यों कहते हैं कि तू मेरी माँ नहीं है। 'यशोदा माँ' जिसे अपने कान्हा से कोई शिकायत नहीं है? उन्हें अपने लल्ला को कुछ नहीं बनाना, वह जैसा है उनके लिए पूरा है।
'मैया कबहुँ बढ़ैगी चोटी।
किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूँ है छोटी।'
यहाँ तक कि मुख में पूरी पृथ्वी दिखा देने, न जाने कितने मायावियों, राक्षसों का संहार कर देने के बाद भी माँ यशोदा के लिए तो वे घुटने चलते लल्ला ही थे जिनका कभी किसी काम में कोई दोष नहीं होता। सूर के पदों में अनोखी कृष्ण बाल लीलाओं का वर्णन है। सूरदास ने बालक कृष्ण के भावों का मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया जिसने यशोदा के कृष्ण के प्रति वात्सल्य को अमर कर दिया। यशोदा के इस लाल की जिद भी तो उसी की तरह अनोखी थी 'माँ मुझे चाँद चाहिए।'
अपनी बहन के संबंध में लिए गए अपने दाऊ (बलराम) के उस निर्णय का उन्होंने प्रतिकार किया जब दाऊ ने यह तय कर लिया कि वह बहन सुभद्रा का विवाह अपने प्रिय शिष्य दुर्योधन के साथ करेंगे। तब कृष्ण ही ऐसा कह सकते थे कि 'स्वयंवर मेरा है न आपका, तो हम कौन होते हैं सुभद्रा के संबंध में फैसला लेने वाले।' समझाने के बाद भी जब दाऊ नहीं माने तो इतने पूर्ण कृष्ण ही हो सकते हैं कि बहन को अपने प्रेमी के साथ भागने के लिए कह सके।
राजसूय यज्ञ में पत्तल उठाने वाले, अपने रथ के घोड़ों की स्वयं सुश्रूषा करने वाले कान्हा के लिए कोई भी कर्म निषिद्ध नहीं है।
महाभारत युद्ध, जिसके नायक भी वे हैं पर कितनी अनोखी बात है कि इस युद्ध में उन्होंने शस्त्र नहीं उठाए! इस अनूठे व्यक्तित्व को किस ओर पकड़ो कि यह अंक में समा जाए पर कोशिश हर बार अधूरी ही रह जाती है। महाभारत एक विशाल सभ्यता के नष्ट होने की कहानी है। इस घटना के अपयश को श्रीकृष्ण जैसा व्यक्तित्व ही शिरोधार्य कर सकता है।
कितनी बड़ी प्रतीक कथा है जिसमें श्रीकृष्ण ने तय किया कि अब सुधार असंभव है। जब राजभवन में ही स्त्रियों की यह स्थिति है तो बाकी समाज का क्या हाल होगा। राज-दरबार में ही राजवधू का चीरहरण सारे कथित प्रबुद्ध लोगों के सामने हो सकता है तब ऐसे समाज में कोई सुरक्षित भी नहीं है, साथ ही ऐसे समाज को खड़े रहने का कोई अधिकार भी नहीं। इसलिए उन्होंने संदेश दिया- हे अर्जुन उठा शस्त्र! तू तो मात्र निमित्त होगा!
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कृष्ण है सनातन पथ
जन्म: 3112 ईस्वी पूर्व।। ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः। ॐ।।
''हे धनंजय! मुझसे भिन्न दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है। माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते।''- गीता
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कृष्ण जन्म : पुराणों अनुसार आठवें अवतार के रूप में विष्णु ने यह अवतार आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागर में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के सात मुहूर्त निकल गए और आठवाँ उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न उपस्थित हुआ। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5121 वर्ष पूर्व) को हुआ हुआ। ज्योतिषियों अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था।
कृष्ण पर शोध : हाल ही में ब्रिटेन में रहने वाले शोधकर्ता ने खगोलीय घटनाओं, पुरातात्विक तथ्यों आदि के आधार पर कृष्ण जन्म और महाभारत युद्ध के समय का सटिक वर्णन किया है। ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलिय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्तभगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे।
उन्होंने अपनी खोज के लिए टेनेसी के मेम्फिन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर डॉ. नरहरि अचर द्वारा 2004-05 में किए गए शोध का हवाला भी दिया। इसके संदर्भ में उन्होंने पुरातात्विक तथ्यों को भी शामिल किया। जैसे कि लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के सबूत, पानी में डूबी द्वारका और वहाँ मिले कृष्ण-बलराम के की छवियों वाले पुरातात्विक सिक्के और मोहरे, ग्रीक राजा हेलिडोरस द्वारा कृष्ण को सम्मान देने के पुरातात्विक सबूत आदि।
महाभारत, गीता और कृष्ण के समय के संबंध में मेक्समूलर, बेबेर, लुडविग, हो-ज्मान, विंटरनिट्स फॉन श्राडर आदि सभी विदेशी विद्वानों द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों का कुछ भारतीय विद्वानों ने भी अनुसरण कर भ्रम के जाल को और बढ़ावा दिया है। भारत में ब्रह्माकुमारी जैसे मिशनों ने भी कृष्ण और महाभारत युद्ध की ऐतिहासिकता के संबंध में भ्रम फैला रखा है। उक्त की बातों को जोरदार तरीके से खंडन कर कृष्ण पर समग्र शोध किए जाने की आवश्यकता है।
दयानंद सरस्वती ने विदेशी विद्वानों की बातों का खंडन कर अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में एक लेख लिखा था जिसमें युद्धिष्ठिर से लेकर अंतिम हिंदू राजा यशपाल तक के नाम दिए है। यशपाल को शाहबुद्दीन ने पराजित कर दिल्ली पर अपना आधिपत्य कायम किया था।
कृष्ण जीवन : श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है वही इतिहास सिद्ध है बाकी सभी विस्तार, अलंकार और श्रृंगार की बातें हैं। वेदों के गोपी, गोपिका और रास का गलत अर्थ निकाले जाने के कारण भागवत और ब्रह्मवैवर्त सहित अन्य पुराणों में उनके जीवन चरित्र को श्रृंगारिक रूप दिया गया है। श्रीकृष्ण ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं, जो अपने कर्मों से मनुष्य से भगवान या महामानव हो गए न कि ईश्वर। न वे सृष्टि रचयिता हैं और न ही सृष्टिपालक। वे तो महामानव हैं।
श्रीकृष्ण शिक्षा-दीक्षा : योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने वेद और योग की शिक्षा और दीक्षा उज्जैन स्थित महर्षि सांदिपनी के आश्रम में रह कर हासिल की थी। वह योग में पारगत थे तथा योग द्वारा जो भी सिद्धियाँ होती है वह स्वत: ही उन्हें प्राप्य थी। सिद्धियों से पार भी जगत है वह उस जगत की चर्चा गीता में करते हैं। गीता मानती है कि चमत्कार धर्म नहीं है। स्थितप्रज्ञ हो जाना ही धर्म है।
महाभारत के कृष्ण
श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है वही इतिहास सिद्ध है बाकी सभी विस्तार, अलंकार और श्रृंगार की बातें हैं।कृष्ण पत्नी और प्रेमिका : कृष्ण को चाहने वाली अनेकों गोपियाँ और प्रेमिकाएँ थी। कृष्ण-भक्त कवियों ने अपने काव्य में गोपी-कृष्ण की रासलीला को प्रमुख स्थान दिया है। पुराणों में गोपी-कृष्ण के प्रेम संबंधों को आध्यात्मिक और अति श्रांगारिक रूप दिया गया है। महाभारत में यह आध्यात्मिक रूप नहीं मिलता।
रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती आदि कृष्णकी विवाहिता पत्नियाँ हैं। राधा, ललिता आदि उनकी प्रेमिकाएँ थी। उक्त सभी को सखियाँ भी कहा जाता है। राधा की कुछ सखियाँ भी कृष्ण से प्रेम करती थी जिनके नाम निम्न है:- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी हैं। ब्रह्मवैवर्त्त पुराण अनुसार कृष्ण की कुछ ही प्रेमिकाएँ थी जिनके नाम इस तरह है:- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।
कर्म योगी कृष्ण : गीता में कर्म योग का बहुत महत्व है। गीता में कर्म बंधन से मुक्ति के साधन बताएँ हैं। कर्मों से मुक्ति नहीं, कर्मों के जो बंधन है उससे मुक्ति। कर्म बंधन अर्थात हम जो भी कर्म करते हैं उससे जो शरीर और मन पर प्रभाव पड़ता है उस प्रभाव के बंधन से मुक्ति आवश्यक है।
कृष्ण ने जो भी कार्य किया उसे अपना कर्म समझा, अपने कार्य की सिद्धि के लिए उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद सभी का उपयोग किया, क्योंकि वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण जीते थे और पूरी जिम्मेदारी के साथ उसका पालन करते थे। न अतीत में और न भविष्य में, जहाँ हैं वहीं पूरी सघनता से जीना ही उनका उद्देश्य रहा।
कृष्ण निवास : गोकुल, वृंदावन और द्वारिका में कृष्ण ने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण क्षण गुजारे। पूरे भारतवर्ष में कृष्ण अनेकों स्थान पर गए। वे जहाँ-जहाँ भी गए उक्त स्थान से जुड़ी उनकी गाथाएँ प्रचलित है लेकिन मथुरा उनकी जन्मभूमि होने के कारण हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
महाभारत का युद्ध : कौरवों और पांडवों के बीच हस्तिनापुर की गद्दी के लिए कुरुक्षेत्र में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध हुआ था। कुरुक्षेत्र हरियाणा प्रान्त का एक जिला है। मान्यता है कि यहीं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
कृष्ण इस युद्ध में पांडवों के साथ थे। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। नवीनतम शोधानुसार यह युद्ध 3067 ई. पूर्व हुआ था। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी। तभी से कलियुग का आरम्भ माना जाता है।
कृष्ण जन्म और मृत्यु के समय ग्रह-नक्षत्रों की जो स्थिति थी उस आधार पर ज्योतिषियों अनुसार कृष्ण की आयु 119-33 वर्ष आँकी गई है। उनकी मृत्यु एक बहेलिए के तीर के लगने से हुई थी।
गीता प्रवचन : कृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान महाराजा पांडु एवं रानी कुंती के तीसरे पुत्र अर्जुन को जो उपदेश दिया वह गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों के सार को गीता कहा गया है। ऋषि वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे। गीता महाभारत के भीष्मपर्व का हिस्सा है।
स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि युद्ध क्षेत्र में जो ज्ञान मैंने तुझे दिया था उस वक्त मैं योगयुक्त था। अत: उस अवस्था में परमात्मा की बात कहते हुए, वह परमात्मा के प्रतिनिधि बनते हुए परमात्मा के लिए मैं, मेरा, मुझे इत्यादि शब्दों का प्रयोग करते हैं इससे यह आशय नहीं कि वे खुद परमात्मा हैं या उनमें किसी प्रकार का अहंकार है।
द्वारिका निर्माण : कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने गुजरात के समुद्र के तट पर द्वारिका का निर्माण कराया और वहाँ एक नए राज्य की स्थापना की। कालांतर में यह नगरी समुद्र में डूब गई, जिसके कुछ अवशेष अभी हाल में ही खोजे गए हैं। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित शारदापीठ भी यहीं पर स्थित है। हिंदुओं को चार धामों में से एक द्वारिका धाम को द्वारिकापुरी मोक्ष तीर्थ कहा जाता है। स्कंदपुराण में श्रीद्वारिका महात्म्य का वर्णन मिलता है।
जैन धर्म : जैन धर्म के २२वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ भगवान जो कृष्ण के चचेरे भाई थे, कृष्ण इनके पास बैठकर इनके प्रवचन सुना करते थे। जैन धर्म ने कृष्ण को उनके त्रैषठ शलाका पुरुषों में शामिल किया है, जो बारह नारायणों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि अगली चौबीसी में कृष्ण जैनियों के प्रथम तीर्थंकर होंगे।
''उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात पूजते हैं। परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।''-कृष्ण
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कृष्ण और उनका जीवन
'न कोई मरता है और न ही कोई मारता है, सभी निमित्त मात्र हैं...सभी प्राणी जन्म से पहले बिना शरीर के थे, मरने के उपरांत वे बिना शरीर वाले हो जाएँगे। यह तो बीच में ही शरीर वाले देखे जाते हैं, फिर इनका शोक क्यों करते हो।'- कृष्ण
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कृष्ण पूर्ण योगी और यौद्धा थे। यमुना के तट पर और यमुना के ही जंगलों में गाय और गोपियों के संग-साथ रहकर बाल्यकाल में कृष्ण ने पूतना, शकटासुर, यमलार्जुन, कलिय-दमन, प्रलंब, अरिष्ट आदि का संहार किया तो किशोरावस्था में बड़े भाई बलदेव के साथ कंस का वध किया। जवान होते-होते उनकी दूर-दूर तक ख्याति फैल गई थी। फिर भी कृष्ण का जीवन सफलताओं और असफलताओं की एक लंबी और रोचक दास्तान है।
कृष्ण के बाल जीवन पर अनेक किस्से लिखे गए हैं लेकिन महाभारत में कृष्ण के बाल्यकाल का वृत्तांत नहीं मिलता। महाभारत के हरिवंश पर्व में ही कृष्ण का जीवन वृत्तांत मिलता है। महाभारत के भीष्म पर्व में भीष्म द्वारा कृष्ण की जो महिमा का वर्णन किया गया है वह शिशुपाल द्वारा आपत्ति लिए जाने के कारण ही किया गया था। यह सब वचन प्रशंसा के निमित्त ही कहे गए थे। भीष्म ने कृष्ण के उत्तम चरित्र को देखकर उन्हें नारायण हरि का पद दिया था।
कृष्ण जन्म : हिंदू मान्यता अनुसार विष्णु ने आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में आठवें अवतार श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागर में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के सात मुहूर्त निकल गए और आठवाँ उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न में हुआ। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में ईसा से लगभग 3200 वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ। ज्योतिषियों अनुसार उस समय शून्य काल (रात 12 बजे) था।
ऐतिहासिक अनुसंधानों के आधार पर श्रीकृष्ण का जन्म लगभग 1500 ई.पू. माना जाता है, जो कि अनुचित है। हिंदू काल गणना अनुसार आज से लगभग 5235 वर्ष पूर्व कृष्ण का जन्म हुआ था।
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कृष्ण की पत्नी और प्रेमिका : कृष्ण को चाहने वाली अनेक गोपियाँ और प्रेमिकाएँ थीं। कृष्ण-भक्त कवियों ने अपने काव्य में गोपी-कृष्ण की रासलीला को प्रमुख स्थान दिया है। पुराणों में गोपी-कृष्ण के प्रेम संबंधों को आध्यात्मिक और अति श्रृंगारिक रूप दिया गया है। महाभारत में यह आध्यात्मिक रूप नहीं मिलता।
रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती आदि कृष्ण की विवाहिता पत्नियाँ हैं। राधा, ललिता आदि उनकी प्रेमिकाएँ थीं। उक्त सभी को सखियाँ भी कहा जाता है। राधा की कुछ सखियाँ भी कृष्ण से प्रेम करती थीं जिनके नाम निम्न हैं:- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी हैं। ब्रह्मवैवर्त्त पुराण अनुसार कृष्ण की कुछ ही प्रेमिकाएँ थीं जिनके नाम इस तरह हैं:- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।
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कालिया और धनुक का सामना करने के कारण दोनो भाइयों की ख्याति के चलते कंस समझ गया कि ज्योतिष भविष्यवाणी अनुसार इतने बलशाली तो वासुदेव और देवकी के पुत्र ही हो सकते हैं। तब कंस ने दोनों भाइयों को पहलवानी के लिए निमंत्रण दिया क्योंकि कंस चाहता था कि इन्हें पहलवानों के हाथों मरवा दिया जाए, लेकिन दोनों भाइयों ने पहलवानों के शिरोमणि चाणूर और मुष्टिक को मारकर कंस को पकड़ लिया और सबके देखते-देखते ही उसको भी मार दिया।
कृष्ण की शिक्षा-दीक्षा: योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने वेद और योग की शिक्षा और दीक्षा उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि के आश्रम में रहकर हासिल की थी। उस काल में उज्जैन को उज्जयिनी व अवंतिका कहा जाता था। वहाँ से शिक्षा पाकर वे मथुरा की रक्षा करने लगे। कंस के मरने पर उन्होंने मथुरा में वृष्णि, अंधक, भोज और शनि वंशों का गणराज्य स्थापित किया था।
जरासंघ का आक्रमण: जरासंघ कंस का श्वसुर था। कंस की पत्नी मगथ नरेश जरासंघ को बार-बार इस बात के लिए उकसाती थी कि कंस का बदला लेना है। इस कारण जरासंघ ने मथुरा के राज्य को हड़पने के लिए कई आक्रमण किए तब अंतत: कृष्ण ने अपने सजातियों को मथुरा छोड़ देने पर राजी कर लिया। वे सब मथुरा छोड़कर रैवत पर्वत के समीप कुशस्थली पुरी (द्वारिका) में जाकर बस गए।- महाभारत मौसल- 14.43-50
भौमासुर से युद्ध : इस पलायन के दौरान हिमालय जिसे देवलोक कहा जाता था वहाँ भौमासुर का राज्य हो चला था जो देवताओं को सताया करता था। उसने इंद्र की माता अदिति के कुंडल छीन लिए थे और वह उसे वापस नहीं कर रहा था। तब देवों के कहने पर कृष्ण ने भौमासुर से युद्ध करना स्वीकार कर लिया। लेकिन उन्होंने दो शर्तें उपस्थित कर दीं। एक तो उन्होंने सुदर्शन चक्र माँगा और दूसरा युद्ध के लिए गरुड़ यान। तब ही वे युद्ध करेंगे। देवराज इंद्र ने यह स्वीकार कर लिया। चक्र और गरुढ़ यान होने के कारण उन्हें विष्णु का अवतार माना जाने लगा। क्योंकि यह दोनों वस्तुएँ सिर्फ विष्णु के पास ही होती थीं। सुदर्शन चक्र को उस काल में बहुत ही घातक अस्त्र माना जाता था।
कृष्ण की गीता : वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों का सार 'गीता' को माना है। कृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान महाराजा पांडु एवं रानी कुंती के तीसरे पुत्र अर्जुन को जो ज्ञान दिया वह गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गीता में सब कुछ है- दर्शन है, योग है, धर्म है और नीति भी। गीता कृष्ण द्वारा महाभारत के भीष्मपर्व में अर्जुन को दिया गया ज्ञान है। इसे महाभारत के साथ पढ़ने और समझने से ही लाभ मिलता है। अन्यत्र से नहीं।
महाभारत युद्ध : विश्व इतिहास में महाभारत के युद्ध को धर्मयुद्ध के नाम से जाना जाता है। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने एक बाण लगने के कारण देह छोड़ दी थी।
महाभारत युद्ध चंद्रवंशियों के दो परिवार कौरव और पांडव के बीच हुआ था। उक्त लड़ाई आज के हरियाणा स्थित कुरुक्षेत्र के आसपास हुई मानी गई है। इस युद्ध में पांडव विजयी हुए थे। इस लड़ाई में कृष्ण पांडवों के साथ थे। बलदेव दुर्योधन की ओर से लड़ना चाहते थे लेकिन कृष्ण के पांडवों की ओर होने से उन्होंने युद्ध का त्याग कर दिया। इस युद्ध के बाद यदुवंशियों में आपसी फूट पड़ गई और वे सभी आपस में लड़कर ही मर गए। पारिवारिक युद्ध के चलते कृष्ण के पुत्र साम्ब, चारुदेष्ण, और प्रद्युम्न तथा पोते अनिरुद्ध भी जब युद्ध में मारे गए तो कृष्ण ने क्रोधवश शेष बचे यादवों का नाश कर दिया।- महाभारत मौसल-3.41-3.46
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वन में श्रीकृष्ण भूमि पर लेटे थे। उस समय एक व्याघ मृगों को मारने की इच्छा से उधर आ निकला। व्याघ ने दूर से श्रीकृष्ण को मृग समझकर उन पर बाण चला दिया। जब वह पास आया तो पीताम्बरधारी कृष्ण को वहाँ देख भयभीत हो खड़ा रह गया। 119 वर्ष की उम्र में कृष्ण ने देह छोड़ दी।
परमात्मा और कृष्ण : कृष्ण को महर्षि वेद व्यास परमात्मा मानते थे। महाभारत को छोड़कर कृष्ण के जीवन चरित्र के संबंध में पुराणों या अन्य ग्रंथों में अतिरंजित चित्रण किया गया। जबकि गीता और महाभारत में अनेक स्थानों पर कृष्ण ने स्वयं को कभी ईश्वर या परमात्मा नहीं कहा।
गीता के श्लोक 13-19 में परमात्मा, आत्मा और प्रकृति में भेद माना है। गीता और महाभारत में कई स्थानों पर भगवान कृष्ण ने परमात्मा की सत्ता को स्वीकार कर यह सिद्ध किया है कि वे स्वयं परमात्मा नहीं हैं। गीता में अनेक स्थानों पर परमात्मा को अन्य वचन में कहा गया है। जहाँ उत्तम पुरुष (मैं) में लिखा गया है वहाँ उक्त काल व परिस्थितिवश विशेष प्रयोजन में ऐसा हो सकता है।
भगवान का अर्थ जो समस्त ऐश्वर्य-युक्त हो तथा धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान वैराग्य से युक्त हो। जो योगयुक्त मोक्ष में स्थित है उसे ही स्थितप्रज्ञ, भगवान, अरिहंत या बुद्ध कहा जाता है। भगवान शब्द का उपयोग परमात्मा या ईश्वर के लिए भी किए जाने से भ्रम उत्पन्न होता है।
अंतत: कृष्ण के जीवन के कई उलझे हुए पहलू हैं जिन्हें समझना आसान नहीं है किंतु फिर भी महाभारत का गहन अध्ययन किया जाए तो उनके जीवन की सच्चाई को जाना जा सकता है। आज जरूरत इस बात की है कि हम कृष्ण के जीवन को पौराणिक गाथा और चमत्कारों से हटाकर ऐतिहासिक तथ्यों के साथ लिखें। इति। श्रीकृष्णाय शरणम मम्।
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