हिंदी में हस्ताक्षर
प्रगति राष्ट्रभाषा करे, ये विचार है नेक
लेकिन आई सामने, विकट समस्या एक।
विकट समस्या एक, काम हिंदी में करते,
किंतु शॉर्ट में हस्ताक्षर करने से हम डरते।
बोले ‘काशी नाथ’ जरा हमको बतलाना,
दोनों आंख होते हुए भी, लिखूं मैं ‘काना’?
अफसर, बाबू, क्लर्क, होय गड़बड़ घोटाला,
डॉक्टर ‘नाथु लाल’ करें हस्ताक्षर ‘नाला’।
कहें ‘काका’ बतलाओ क्या संभव है ऐसा,
लाला ‘भैंरो साह’ लिखंे अपने को ‘भैंसा’?
उजले ‘कांति लाल’, किंतु कहलाए काला,
भैया ‘भाई लाल’ पुकारे जाएं ‘भाला’।
चिढ़ा-चिढ़ाकर ‘गज धारी’ को ‘गधा’ कहेंगे,
कह काका कवि ‘बाबू लाल’ ‘बाला’ बनेंगे।
बाबू ‘छोटे लाल’, अब लिखेंगे छोला,
कह काका कवि ‘होली लाल’ बनेंगे ‘होला’।
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